विधि संवाददाता, इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत प्रशिक्षित और संविदा पर कार्यरत स्वास्थ्य सेविकाओं को बैचवार वरिष्ठता के आधार पर एक दिसंबर 2016 से सीधी भर्ती के तहत नियुक्ति देने के लिए राज्य सरकार से विचार करने को कहा है। कोर्ट ने कहा है कि अर्हता के आधार पर प्रशिक्षण पूरा करने की अनुमति देने के बाद नियुक्ति के समय शैक्षिक योग्यता का आकलन करना मनमानापूर्ण और समानता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश नर्स मेडवाइफ काउंसिल लखनऊ में पंजीकृत स्वास्थ्य सेविकाओं को बैचवार वरिष्ठता के आधार पर नियुक्ति पाने का अधिकार है। आयु सीमा में छूट के मसले पर कोर्ट ने कहा कि सरकार पहले ही छूट दे चुकी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति रामसूरत राम मौर्य ने प्रियंका शुक्ला सहित 94 याचियों की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता रवि कुमार शुक्ला व कई अन्य ने बहस की। मालूम हो कि 5628 स्वास्थ्य सेविकाओं की सीधी भर्ती का विज्ञापन निकाला गया था। संविदा पर कार्यरत प्रशिक्षित याचियों ने वरिष्ठता के आधार पर सीधी भर्ती की मांग में याचिका दाखिल की। याचियों ने कहा है कि सेवा नियमावली में सरकारी योजना के तहत नियमित नियुक्ति पाने का उन्हें अधिकार है। स्वास्थ्य सेविकाएं महिलाओं को खून की कमी, मलेरिया, कुष्ठरोग, कालाजार आदि कई घातक बीमारियों से लड़ने में सक्षम बनाने के राष्ट्रीय मिशन को पूरा करने के लिए रखी गई हैं। इन्हें प्रशिक्षित भी किया गया है। 18 से 40 वर्ष के स्त्री/पुरुष इस पद पर नियुक्त हो सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि एक वर्ग के रूप में प्रशिक्षण पूरा करने वालों को शिक्षा विषय के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।
यह आदेश न्यायमूर्ति रामसूरत राम मौर्य ने प्रियंका शुक्ला सहित 94 याचियों की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता रवि कुमार शुक्ला व कई अन्य ने बहस की। मालूम हो कि 5628 स्वास्थ्य सेविकाओं की सीधी भर्ती का विज्ञापन निकाला गया था। संविदा पर कार्यरत प्रशिक्षित याचियों ने वरिष्ठता के आधार पर सीधी भर्ती की मांग में याचिका दाखिल की। याचियों ने कहा है कि सेवा नियमावली में सरकारी योजना के तहत नियमित नियुक्ति पाने का उन्हें अधिकार है। स्वास्थ्य सेविकाएं महिलाओं को खून की कमी, मलेरिया, कुष्ठरोग, कालाजार आदि कई घातक बीमारियों से लड़ने में सक्षम बनाने के राष्ट्रीय मिशन को पूरा करने के लिए रखी गई हैं। इन्हें प्रशिक्षित भी किया गया है। 18 से 40 वर्ष के स्त्री/पुरुष इस पद पर नियुक्त हो सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि एक वर्ग के रूप में प्रशिक्षण पूरा करने वालों को शिक्षा विषय के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।