जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली: उच्च शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता को सुधारने और उन्हें विश्वस्तरीय बनाने के लिए सरकार अब मुस्तैदी से जुट गई है। इस दिशा में सरकार ने जो एक बड़ी पहल की है, वह शिक्षकों के खाली पदों को भरने की है। मंत्रलय स्तर पर इन दिनों इसे लेकर तेजी से तैयारी चल रही है। माना जा रहा है कि दिसंबर के अंत तक सरकार एक बड़ा अभियान शुरू कर सकती है। सरकार ने पिछले दो सालों में देश के करीब 80 संस्थानों के प्रमुखों के खाली पड़े पदों को भरने का काम किया है।
मानव संसाधन विकास मंत्रलय ने यह पहल उस समय की, जब उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के करीब 35 फीसद पद खाली हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक अकेले केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के 6141 से ज्यादा पद खाली हैं। इनमें प्रोफेसर के 1334 पद, एसोसिएट प्रोफेसर के 2250 और सहायक प्रोफेसर के करीब 2551 पद खाली हैं। इसके अलावा आइआइटी, आइआइएम और एनआइटी जैसे संस्थानों में भी शिक्षकों के बड़ी संख्या में पद खाली हैं।
मानव संसाधन विकास मंत्रलय से जुड़े सूत्रों की माने तो मौजूदा समय में उच्च शिक्षण संस्थानों की हालत बेहद खराब है। जहां पढ़ाने के लिए शिक्षक ही नहीं है। सबसे खराब स्थिति केंद्रीय विश्वविद्यालय ओडिशा की है, जहां पढ़ाने वाले शिक्षकों की कुल संख्या 17 है। इसके साथ ही दिल्ली विवि की स्थिति भी बेहद खराब है, जहां शिक्षकों के करीब 62 फीसद पद खाली हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य विश्वविद्यालयों की स्थिति तो इससे भी ज्यादा खराब है, जहां काम चलाऊ व्यवस्था के तहत कक्षाएं संचालित की जा रही हैं।
मानव संसाधन विकास मंत्रलय ने यह पहल उस समय की, जब उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के करीब 35 फीसद पद खाली हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक अकेले केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के 6141 से ज्यादा पद खाली हैं। इनमें प्रोफेसर के 1334 पद, एसोसिएट प्रोफेसर के 2250 और सहायक प्रोफेसर के करीब 2551 पद खाली हैं। इसके अलावा आइआइटी, आइआइएम और एनआइटी जैसे संस्थानों में भी शिक्षकों के बड़ी संख्या में पद खाली हैं।
मानव संसाधन विकास मंत्रलय से जुड़े सूत्रों की माने तो मौजूदा समय में उच्च शिक्षण संस्थानों की हालत बेहद खराब है। जहां पढ़ाने के लिए शिक्षक ही नहीं है। सबसे खराब स्थिति केंद्रीय विश्वविद्यालय ओडिशा की है, जहां पढ़ाने वाले शिक्षकों की कुल संख्या 17 है। इसके साथ ही दिल्ली विवि की स्थिति भी बेहद खराब है, जहां शिक्षकों के करीब 62 फीसद पद खाली हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य विश्वविद्यालयों की स्थिति तो इससे भी ज्यादा खराब है, जहां काम चलाऊ व्यवस्था के तहत कक्षाएं संचालित की जा रही हैं।